
बच्चों के विकास के ३ आधार स्तंभ : माता – पिता और गुरु
3-Pillars-Of-Children-Development-Mother-Father-Teacher
भारतीय संस्कृति के आधारभुत ग्रंथ वेद में माता – पिता (Mother – Father) और गुरु (Teacher) को देवता के समान पूज्य माना गया है| आप शोच रहें होंगें के बच्चो के कोलम में माता – पिता और गुरु कहाँ से आ गये| हाँ हमारे बच्चो को तीन साल तक का समय माता – पिता (Mother – Father) और परिवार में जाता है और फिर शुरु होती है गुरु की उपस्थिति| तीनो बच्चो के चरित्र निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते है| बच्चों के विकास के ३ आधार स्तंभ माता – पिता और गुरु है और यह तीन भारतीय संस्कृति और समाज का प्राण भी हैं |
आज में आपको बच्चों के जीवन को संस्कार पूर्ण, विवेक , सत्य – असत्य के बीच की कड़ी को पहचानने में और उनके जीवन निर्माण में माता – पिता गुरु की क्या भूमिका हैं| आप के समक्ष रख रही हूँ|
हमें मालूम है की राम भगवान ने अपने जीवन में माता – पिता और गुरु को उच्च आसन पर माना हैं| अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए वह ( राम ) वनवास गये| आदि कवि वाल्मीकि द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में माता – पिता और गुरु की महिमा के विषय में मर्यादा पुरषोतम भगवान राम सीताजी से कहतें हैं की हे सीता माता – पिता (Mother – Father) और गुरु (Teacher) ये तीन प्रत्यक्ष देवतां समान हैं इनकी अवहेलना अथवा उपेक्षा करके आप किसी भी अप्रत्यक्ष देवता की आराधना कैसे कर सकते हैं|
इन तीनो की सेवा से धर्म, अर्थ और काम तीनो की प्राप्ति होती है बच्चों के लिए माता – पिता (Mother – Father) के सामान पवित्र और पूज्य इस संसार में कोई और तीर्थ नहीं है|
माता – पिता (Mother – Father) को अपने बच्चों (Children) को हमेशा कभी रामायण की कथा सुनाकर अथवा बाल कथाओं के माध्यम से जीवन में किस तरह संस्कार का सिंचन करना चाहिए वह बताते रहना चाहिये | यहाँ हम श्री रामजी की बात कर रहें हैं की उन्होंने किस तरह मर्यादा का अपने जीवन में श्रद्धा पूर्वक पालन किया| माता – पिता की आज्ञा को प्रसन्नता पूर्वक शिरोधायी करते हुए उन्होंने चौदह वर्ष के लिये वनवास हेतु प्रस्थान किया| माता – पिता की आज्ञा का पालन करने के इस अनुपम उदाहरण के कारण श्री रामजी घर घर में पूजा जाता हैं| यहाँ हमें अपने बच्चो को वनवास जाने की सीख नहीं देनी हैं मात्र उदहारण पेश करना हैं बच्चो की संस्कारिता मर्यादा का|
हमारे प्राचीन शास्त्र रामायण , महाभारत ,वेद , पुराण सभी शास्त्रों में माता पिता को प्रथम पूज्य माना गया हैं।
पद्मपुराण में भी माता – पिता (Mother – Father) की इमा के विषय में कहाँ गया हैं| पिता स्वर्ग हें पिता धर्म हैं और पिता ही सर्वोत्कृष्ट तपस्या हैं| पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं| जिस की सेवा से माता – पिता संतुष्ट रहते हैउस पुत्र को गंगा स्नान का फल प्राप्त होता हैं| जो पुत्र माता – पिता की आराधना करता है उसके ध्वारा सातद्वीपों से युकत पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है|
जो बच्चे (Children) अपने माता – पिता (Mother – Father) का कहना नहीं मानते या उनकी इज्जत नहीं करते वह जीवन में कभी अच्छे नागरिक नहीं बन सकते|
उदहारण के लिए भगवान गणेशजी और कार्तिकेय जी की कथा लगभग सभी जानते होंगें| गणेशजी और कार्तिकेयजी के विवाह प्रसंग में पृथ्वी की परिक्रमा करने में प्रथम आने की कथा से सभी लोग परिचित है| कार्तिकेयजी अपने वाहन से पृथ्वी की परिक्रमा करने में प्रथम रहें जबकि गणेशजी ने अपने माता – पिता ( भगवान शिव और पार्वती ) को विधिवत आरधना करते हुए परिक्रमा पूरी करके कहाँ की मैने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर ली है क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी कहाँ हैं की माता – पिता की प्रदक्षिणा करने मात्र से ही पृथ्वी की पूरी परिक्रमा हो जाती है| पुत्र गणेश के उत्तर से भगवन शिव और माता पार्वती संतुष्ट और प्रसन होकर उनको पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने चुका आशीर्वाद देते है।
हमें पाश्चतय संस्कृति को लक्ष्य में लेकर Mother’s Day और Father’s Day मानाने की जरुरत नहीं है और ना ही गुरु (Teacher) के लिए व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा मानने की जरुरत हैं जबकि हम अपनी संस्कृति को लक्ष्य में लेकर हमारे जन्मदाता माता – पिता का आदर और उनकी सेवा करें और गुरु की शिक्षा को एकाग्र मन से धारण करें। हमें बचपन से ही अपने बच्चे को माता – पिता का सन्मान करना, सुबह उठकर उनके चरण स्पर्श करना और उनकी बात मानना सिखायेंगें तो हमारा बच्चा इन सब चीजो का पालन करेगा | और जब बड़ा होकर वह स्कूल में जाता हैं तो माता – पिता को अपने बच्चे (Children) को गुरु का आदर और समान्न करना , उनकी बात मानना सिखाना चाहिए | हमारे बच्चे को समझना चाहिए की माता – पिता और गुरु (Teacher) इस संसार में देवता समान है |
बच्चे (Children) के लिए भी इस लोक और परलोक में कल्याण के लिये माता – पिता के समान कोई तीर्थ नहीं हैं| जिसने माता – पिता (Mother – Father) को प्रसन्न नहीं किया उनके लिए शिक्षा का कोई महत्व नहीं हैं| माता – पिता की सेवा ही मोक्ष हैं| महाभारत में भगवान वेदव्यास कहते है किं माता के समान कोई तीर्थ नहीं हैं। हमारे सभी धार्मिक ग्रंथो में तीनो का स्थान सर्वश्रेष्ट बता कर उन्हें सन्मानित किया गया है| इसीलिये बच्चो का भी प्रथम कर्तव्य हैं की सदैव तन – मन – धन से श्रधा पूर्वक उनकी सेवा करें|
एक समय भीष्म पितामह से युधिष्ठिर ने धर्म का मार्ग बताने का हेतु निवेदन किया तब पितामह ने जवाब दिया की समस्त धर्मो से उत्तम फल देने वाले माता –पिता और गुरु की भक्ति हैं| इन तीनो की सेवा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म हैं|
इस प्रकार हम अपने धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन करते हैं तो भी भारतीय संस्कृति के अनुसार ये तीनो ही पूज्य माने गये हैं |
भारतीय अस्मिता को ध्यान में रखते हुए हमें अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दे ने चाहिये जो उनके लिये महत्व के हो उंहें पता चले की हमें बड़े होकर किन बातों के प्रति अथवा किन संस्कारो के प्रति सजाग रहना है। धार्मिक ग्रंथो के आधार पर भी जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय, सकारात्मक सोच लोगों का आदर करना यह सब बातें माता – पिता और गुरु के माध्यम से समझमें आती है। बच्चे घर के सदस्यों को देखकर भी बहुत कुछ सीखते हैं और जब विध्याभ्यास के लिए स्कुल में जाते है तब अपने शिक्षक (गुरु ) से भी बहुत कुछ सीखते हैं|
यहाँ हम प्राचीन धार्मिक ग्रंथो की बात करते हैं किं प्राचीन काल से समाज में माता – पिता एवं गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा हैं| ये तीनो ही सदैव पूजनीय एवं श्रेष्ठ माने गये हैं| इसीलिये इन तीनों को प्रत्यक्ष देव कहाँ गया हैं| इनको समाज में सदैव आदर पूर्वक स्थान दिया जाना हमारा परम धर्म एवं कर्तव्य हैं| यदि हम इन तीनो की सेवा, त्याग , एवं ऋण को भूलकर इन्हें पूरी तरह से सन्मान का स्थान नहीं देते है तो वह पाप का भागीदार हैं| हमें अपने बच्चों को रामायण की कथा में श्री राम और लक्ष्मण का उदहारण बताना चाहिये|
अब हम आज की दशा पर विचार करते हुए आपको बताने जा रहें हैं कि आज इन तीनो की स्थिति समाज में दयनीय होती जा रही हैं| परिवार दिन प्रतिदन विभक्त हो रहें हैं| संयुकत परिवार प्रथा लुप्त हो रही हैं| और परिवार सिकुड़ते जा रहें हैं इसे हम पश्यात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव कहें अथवा वर्तमान शिक्षां प्रणाली को दोष दें , आज वृध माता – पिता को परिवार में भारं स्वरूप समझा जाने लगा हैं नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति एवं संस्कारो से दूर होती जा रही हैं| जो माता – पिता चार पुत्रों के पालन –पोषण ,शिक्षा , विवाह आदि में जीवन भर की पूँजी लगा दत्ते हैं , उन्ही माता – पिता की देखभाल, सेवा, चिकित्सा चारो पुत्र मिलकर भी नहीं कर सकते| यही कारण हैं किं वृध एवं असहाय माता – पिता वृधाश्रम में शरण पाने के लिए विवश हो जाते है। वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में सेवा, सहानुभूति , प्रेम से वंचित होते हैं| इसके विपरीत आज भी कुछ परिवारों में संस्कारवान पुत्र अपने वृध माता – पिता को सन्मानपूर्वक रखते है| उनकी सेवा करतें हैं और आदरपूर्वक वह वृध माता – पिता अपने पोत्र – पुत्र के साथ आराम से रहते हैं|
जिस प्रकार परिवारों में माता – पिता की स्थिति दयनीय हैं एवं उपेक्षित बनती जा रही हैं ठीक उसी तरह गुरुजनों की स्थिति में भी गिरावट देखी जा रही हैं| ” गुरुब्रह्मा: गुरुविष्णु: गुरुदेवों महेश्वर:” की भावना आज कम होती जा रही हैं| गुरु अब केवल वेतन भोगी शिक्षक के रूप में देखा जाता हैं| जिन गुरु को हमारे धार्मिक ग्रंथों में अनेक स्थानों पर प्रत्यक्ष देव की संज्ञा से विभूषित किया गया हें उनकी दशा आज चिंता का विषय हैं| इस स्थिति को सुधरने के लिए आज देश के बुधि जिवियों को आगे बढ़कर सोचना होगा| परिवार को संस्कार की जन्मस्थल कहाँ गया हैं| बचपन के संस्कार जीवन पर्यंत बने रहते हैं| महापुरुषो के जीवन चरित्र पढ़ने से इस बात की पुष्टि हो जाती हैं किं उनके बचपन में ही माता – पिता एवं गुरुध्वारा उनको शुभ संस्कारो की शिक्षा दी जाती थी|
इस विषय में महत्वपूर्ण बातें हैं जो हमें ध्यान रखनी हैं|
1 माता – पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य स्वयं ही अपने आचरण एवं व्यवहार धवारा बालकों के समक्ष अच्छे संस्कारों का पालन करने का उदहारण प्रस्तुत करें|
2 हम अपने बच्चे (Children) से जिन सदगुनो की अपेक्षा रखते हैं, वह पहले अपने जीवन में अपना लें| बच्चा स्वभाव से हिं अनुकरण धवारा आसानी से हर बात सीखता हैं|
3 बच्चे (Children) अच्छी अथवा बुरी आदतें या संस्कार पहलें अपने परिवारं से और फिर आस – पास के वातावरण से ग्रहण करते हैं| और फिर गुरु की पास से सीखता है। अत: हमारा दायित्व है की हम परिवार में बच्चे को बचपन से ही बड़ो के प्रति श्रधा एवं सन्मान की भावना रखने की शिक्षा दें| और उनकी छोटी छोटी बातों पर ध्यान दें।
4 परिवार में सभी मांगलिक अवसरों , त्योहारों , एवं महत्वपूर्ण संस्कारों के आयोजनों में बुजुर्गो एवं गुरुजनों को विशेष स्थान प्रदान करें उनका अभिवादन चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्तं करें तथा अवसर के अनुरूप उपहार भेट कर सम्मान प्रदानं करें|
- परिवार में एक अच्छा पुस्तकालय होना अति आवश्यक है, जिसमें महापुरुषों के जीवन चरित्र सम्बन्धी या धार्मिक पुस्तके हो और घर के सभी सदस्य नियमित रूप से पढने की आदत डालें| बच्चे (Children) के जन्मदिन के अवसर पर नैतिक शिक्षा से सम्बंधित पुस्तक भेंट में दें|
इस प्रकार से हम छोटी – छोटी बातें को ध्यान में रखकर अपने बच्चों (Children) कों माता – पिता और गुरु का आदर करना सिखा सकते हैं क्योंकि बच्चों के विकास के ३ आधार स्तंभ माता – पिता और गुरु ही है और यही भारतीय सनातन संस्कृति का उच्च आदर्श है| और यही हमारा कर्तव्य भी है।
Dr. Karuna Trivedi
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Heer Trivedi
Very nice article 👌👍
Karuna Trivedi
Nice article. Mother, father and teacher are the most important part of our life.
Premila Dund
Very good and important mahiti
Premila Dund
Very good and important notes