
चरित्र निर्माण द्वारा बच्चों का भविष्य बदलिए
आज हम अनुभव कर रहें हैं की हमारे जीवन में नैतिक शिक्षा का मापदंड शिथिल हो रहा है|हम इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर चरित्र निर्माण द्वारा बच्चों का भविष्य किस तरह बदल सकतें हैं यह आप को बताने जा रहें हैं | आज घर, विद्यालय , बाजार सभी स्थानों पर प्राय: नैतिकता में गिरावट की बात उभर कर आ रही है| वस्तुत: भारत में ही नहीं आज पूरे विश्व में युवा पेढी आदर्शहीनता Idiosyncrasy एवम नैतिक Moral पतन के कगार पर खड़ी है| जीवन के लिए आवश्यक मूल्यों का पतन हो रहा है| साथ में शिक्षाक्रम में भी ऐसे परिवर्तन की जरुरत है जिससे सामाजिक (Social) और नैतिक (Moral) मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त साधन बन सके| जिससे बच्चो में शरुआत से ही चरित्र Character निर्माण Development एवं देश-भक्ति की भावना जागृत कर सके|
देखा जय तो बच्चों में नैतिक Moral आचरण उनके जीवन की शोभा है| जिस प्रकार से आकाश का श्रुंगार सूर्य और चंद्रमा है| तथा बगीचे का आभूषण मनोरम फूल है,उसी प्रकार जीवन का श्रुंगार उसकी शोभा और उसकी क्रांति एकमात्र नैतिक आचरण ही है| बच्चों में नैतिक आचरण ethical behavior उस सूर्य की ज्योति के सामान है, जो जीवन की दुःख दायी क्षतियों का अंत करके उसे सुख की गोद में पहुंचाता है| यहीं कारण है की विश्व में चरित्रवान व्यक्ति अथवा बच्चा सबसे अधिक समृधिशाली समझा जाता है|
बच्चों में नैतिकता का विकास अर्थात उनके चरित्र निर्माण Character Development की शिक्षा के लिए एक कथा Story का उल्लेख आपको समक्ष रख रही हूँ|
राजा ब्रह्मदत के एक राजपुरोहित थे| समग्र राज्य में उनका रूप,सदाचार,समजदारी और दान के कारण बहुत सम्मान था एक दिन की बात है राज पुरोहित ने सभा से लौटते समय राजकीय कोष का एक सिक्का उठा लिया| कोशाध्यक्ष ने उन्हें देख लिया लेकिन उनके सम्मान का ध्यान रखते हुए कुछ नहीं कहा|उसने दुसरे दिन भी देखा कि राजपुरोहित राजकीय कोष में से दो सिक्के उठाकर ले जा रहे है तो भी वह चुप रहा लेकिन तीसरे दिन जब राजपुरोहित मुठ्ठी भर सिक्के उठाकर जाने लगे तो कोषाध्यक्ष से नहीं रहा गया उसने सैनिकों को बुलाकर कहा राजकोष से धन चुराने के अपराध में राजपुरोहित को गिरफ्तार कर लिया जाय और उन्हें राजमार्गो से पैदल ही जेल की और ले जाया गया| रजा ने आज्ञा दि की राजपुरोहित को कड़ी सजा दी जायें|तभी राजपुरोहित बोले राजा मैं चोर नहीं हूँ| मेरे मनमें शंका थी की प्रजा और आप मेरे किस गुण का सम्मान करतें है मेरे शास्त्र ज्ञान का , मेरे रूप का , या मेरे चरित्र का| इसी का उत्तर खोजने के लिए मैने यह बुरा कार्य किया| मुझे पता चल गया की अगर में नैतिक आचरण की सीमाओं का उल्लंघन करू तो ज्ञान ,रूप , और विद्वता मेरी रक्षा नहीं कर सकती| यह सुनकर राजा आश्चर्य में आ गए और उन्होंने राजपुरोहित को क्षमा कर दिया|
उपर्युक्त कथा से शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के जीवन में नैतिक चरित्र Moral character ही सर्वप्रथम है| इसीलिए हर एक माता – पिता को अपने बच्चे के चरित्र का विकास करना जरुरी है|
शिक्षा में नैतिक एवं आचरण मूल्यों का आशय एक और तो बच्चे के उन गुणों के विकास से है जो उसके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाकर उसें समाज का एक महत्वपूर्ण अंग बना दे और साथ ही बच्चे को भविष्य में इस योग्य बना दें की वह दूसरों के हित में अपना हित समझे | सही अर्थ में बच्चे का व्यक्तित्व इस प्रकार उभरकर आए की वह समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके| अत: बच्चे के विकास के लिए जहाँ एक और स्वच्छता , ईमानदारी , सच्चाई , कर्तव्य परायणता , अनुशासन ,सहयोग निर्भयता ,स्वालम्बन , त्याग सिखाना जरुरी है| वही दूसरी और उन्हें पारस्परिक सहयोग, दूसरों की सेवा, सहानुभूति, एकता , मित्रता , राष्ट्रिय भावना, प्राणिमात्र के लिए सम्मान की भावना का होना भी जरुरी है|
- बच्चों में नैतिक शिक्षा के उदेश्य:-
बच्चों में चरित्र निर्माण Character Development अथवा नैतिक शिक्षा के उदेश्य के लिए उसे सर्वप्रथम एक कुशल नागरिक बनाना है जो बदलते संदर्भो में अपने परिवार एवं स्वयं के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वाह कर सके| जेसे की
- बच्चों को व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में एक उत्तरदायी नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित करना
- बच्चों को यह भी समझाना की वह स्वयं को समझे व हीनता की ग्रंथि से दु:खी न हो|
- अपने बच्चों को प्रेरित करना की वे अपने आचार-विचार में उदार बनें| किसी धर्म-जाति के प्रति ख़राब भावना न रखे |
- बच्चों में सत्य,प्रेम ,करुणा,अहिंसा,सहयोग,साहस,श्रम,जैसे मौलिक मूल्यों का विकास करें |
- बच्चों में स्वतंत्रता ,समानता , बंधुत्व ,समाजवाद, जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों से उन्हें अवगत करतें हुये उन्हें इनके प्रति जागृत करें |
- बच्चों में स्वयं ,समाज ,देश , पर्यावरण , धर्म आदि के प्रति समुचित द्रष्टिकोण का विकास करें |
- अपने बच्चें को तर्क के आधार पर व्यवहार करना सिखाये न की मौन रहें |
इस प्रकार बच्चों अकेला शून्य में नहीं रहता| वह एक वर्ग का,समाज का,परिवार का, समुदाय का सक्रीय सदस्य है| अत: बच्चे की शिक्षा में नैतिक एवं आचरण मूल्य उसके विशिष्ट सामाजिक व सांस्कृतिक सन्दर्भ से जुड़े होने चाहिए|
Children को पढ़ाते समय विषय के अनुरूप ही पढ़ना जरुरी नहीं है| गणित पढ़ाते समय आप उसे सत्य,प्रेम,विश्लेषण,कौशल ,तार्किक विचार आदि गुणों का विकास कर सकते हैं| विज्ञानं पढ़ाते समय स्वतंत्र खोज,सत्य के प्रति निष्ठा,आत्मानुशासन,स्वछता,निर्भयता, वगेरे सद्प्रवृतियों को समझा सकते है| इतिहास और नागरिकशास्त्र पढ़ाते समय देश प्रेम,देशभक्ति,राष्ट्रियता,न्यायप्रियता, आदि कौशल का विकास किया जा सकता है|
1 शैक्षणिक गतिविधि :- Educational Activity
विषयो के अतिरिक्त ऐसी सह शैक्षणिक गतिविधियाँ भी बच्चों में मूल्यों का चरित्र का विकास Character development करती है जेसे की स्कुल में प्रार्थना, महान व्यक्तियों की जन्म जयंती,राष्ट्रिय उत्सव,प्रतियोगिताएं,नाटक,पर्यावरण सुधार वगेरे से बच्चो में उतरदायित्व की भावना जागृत होती है| और उनको जीवन में नैतिक ऐव आचरण मूल्यों को सिखने का अवसर प्राप्त होता है|
2 विद्यालय का वातावरण:- School Environment
School Environment नैतिक शिक्षा का एक अनिवार्य साधन है| इसके द्वारा बच्चे परस्पर व्यवहार और मधुर,मित्रतापूर्ण एवं आदर्श भाव से कार्य करते है| जिसमें भवन की स्वच्छता वगेरे का उन्हें भाव सिखाया जाता है| जैसे की दीवारों पर सुवाक्य लिखना, आदर्श पत्रों का दीवाल पर चित्र बनाना| यहाँ आकर बच्चे अपने आपको नैतिकता के रंग में रंगकर अपने आप को नैतिक शिक्षा से जोड़ते है|
3 प्रयोगात्मक उपाय:- Experimental Solution
बच्चों में कभी – कभी प्रयोगों के द्वारा भी नैतिक एवं आचरण मूल्य विकसित किये जा सकते है| जेसे की आप अपने बच्चे को एक गुल्लक दें और उसमें पैसे डालने को कहें समय आने पर उस गुल्लक को तोड़कर पैसे गिनने को कहे| ऐसे समय उसमें नैतिकता का विकास होता है| और बच्चा भी समझता है की मेंने अपने रुपये इकट्ठे किये है|
4 नैतिक शिक्षा की प्रक्रिया:- Moral Education Procedure
Children में मूल्यों का विकास करना कोई आसन काम नहीं है| हमारे पास न कोई जादुई छड़ी है न कोई तकनीक है हम जिससे हाथों हाथ बच्चें का विकास कर सके| वस्तुत: बच्चों के लिए मूल्यों की शिक्षा प्रक्रिया काफी कठिन है जो वंशगत एवं वातावरण के कोई तत्वों से प्रभावित होती है| फिर भी बच्चों में नैतिक आचरण ethical behavior value विकसाने के लिये हम शिक्षा प्रक्रिया पर ध्यान दे सकते हैं| जैसे –
- बच्चों को शिक्षा में नैतिक एवं आचरण का समावेश होना चाहिये जेसे की मूल्यों के प्रति संवेदना जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों के संदर्भ में सही मार्ग को चुनना उसे अपने जीवन में आत्मसात करना और उसे अपने जीवन में उतरना और उसे व्यवहार में लाना| अत: यह भी कार्य समयबद्ध कार्य नहीं है बल्किं जीवन भर बच्चे को इसकी खोज करना है और उसे अपने जीवन में उतारना है|
- शिक्षा Study हमारे समाज की सहायक पद्धति है जो वर्तमान सामाजिक व्यवस्था Social System को प्रतिबिंबित करती है, लेकिन संकट के समय शिक्षा को एक रचनात्मक भूमिका निभानी होती है और सही मार्ग की और ले जान होता है| अत: बच्चे को जीवन मूल्यों की शिक्षा देने के लिए माता – पिता, गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका है| जिन्हेँ समाज में एक आदर्शवादी बच्चे को तैयार करना है|
- बच्चों की नैतिक शिक्षा उनके चरित्र निर्माण के लिए सभी मानवीय पक्ष का जानना विचारना और अपने चरित्र में शामिल करना जरुरी है बच्चे को सही बातें जानना भी जरुरी है और उनके प्रति भावात्मक लगाव भी होना चाहिए| क्योंकि जीवन मूल्यों Life values के व्यवहार का ज्ञान सभी क्षेत्रो को छूता है तथा इसके माध्यम से बच्चों में तार्किक ढंग से सोचने का, भावनाओ का तथा इच्छा शक्ति का विकास होता है साथ में बच्चे के चरित्र का भी निर्माण Character Development होता है|
बच्चें के व्यवहार का मूल्यांकन :- Evaluation of children’s behavior
बच्चो की शिक्षा में नैतिकता के आचरण मूल्यों का मूल्यांकन करना भी जरुरी है क्योंकि उनको एक उपलब्धि दुसरे कार्य के लिए उत्साह और बल प्रदान करती है| यदि बच्चें दिनभर के कार्यो पर द्रष्टि डाले तो उसे अपने बुरे कार्यो पर शर्म आएगी और अच्छे कार्यो पर खुशी होगी| जो बच्चा अपने कार्यो के प्रति सजाग बनकर अपने प्रतिदिन के कार्यो का ध्यान रखे एक नोट में लिखकर रखे तो वह अपने आप में काफी सुधार ला सकते है| जेसे की
- आज हमने भगवन का ध्यान किया की नहीं|
- आज हमने अपने घर के बड़ों का चरण स्पर्श या प्रणाम किया के नहीं|
- अपने से छोटे लोंगो के साथ प्यार से रहें कि नहीं|
- बड़ों की आज्ञा का पालन किया|
- किसी से झगडा तो नहीं किया या उसे गाली तो नहीं दी |
- कुसंगति अर्थात ख़राब बच्चों से दूर रहें
- दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिये |
- ध्यानपूर्वक अपनी चीजें व्यवस्थित रखें |
- बेकार की बातों में अपना समय न गवायें |
- दूसरों की सहायता करें| उनका मजाक न उडाए| हमेंशा सत्य का आचरण करें|
- समय पर भोजन करें और स्वच्छता का ध्यान रखे|
- किसीसे भी झगडा न करें| अपने से बड़ों का आदर करें और उन्हें मान से बुलाए|
- अपना होमवर्क पूरा करके ही खेलें| और समय पर स्कुल जाये|
- पेड़ पोधों की रक्षा करें| जीव–जंतु के प्रति दया कि भावना रखें |
- सार्वजनिक सम्पति की रक्षा करें| किसी भी बगीचे में जाकर फुल पत्तो को खराब न करें या दूसरा कोई भी सामान तोड़े फोड़े नहीं|
- समय का सदुपयोग करे| शिष्टाचार का पालन करे |
- पानी,बिजली की जितनी जरुरत है उसका उतना ही उपयोग करे उसका अपव्यय न करें|
इस प्रकार माता – पिता इन छोटी छोटी बातों के द्वारा अपने बचो को ईमानदारी का पाठ पढ़ा सकतें हैं और बच्चे को ईमानदारी की राह पर चलने की सीख दे सकते हैं|
निसंदेह बच्चो में नैतिक व्यवस्थापन चरित्र – निर्माण Character Development की शिक्षा बहुत जरुरी है| क्योंकि यही समस्त शिक्षा की नींव है और एक मजबूत समाज Strong society की आधारशिला भी है| अन्त में हम यही कह सकतें है की आज की विषम परिस्थिति के युग में शिक्षा में नैतिक आचरण मूल्यों की बेहद आवश्यकता हैं| मूल्यों की शिक्षा से ही आप अपने बच्चे को इस भावी – पीढ़ी को चरित्रवान नागरिक बना सकते हैं| और देश को उन्नति के शिखर तक पहुँचाने में अपनी अद्वितीय भूमिकां निभा सकतें है तभी आपको अपने बच्चें और अपने आप पर Proud महसूस होगा|
Arti parmar
Very good
Rajesh Gadhavi
Good
Ishwar Panjwani
Excellent
Divyesh Trivedi
Thats why Character build up is necessary…nice article
Heer Trivedi
Very nice information 👌😊
Rushali
Very informative👌👌