• No products in the cart.

Crazy Kids

Indian food

भारतीय परम्परा में भोजन करने की विधि

भोजन माँ अन्नपूर्णा का वरदान है। इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति में देवी अन्नपूर्णा को प्रणाम कर भोजन करने की परम्परा है। यहाँ हम आपको भारतीय परम्परा में भोजन करने की विधि Customs of food in indian tradition की कुछ जानकारी दे रहे है।  आजकल हम देखते है की लोगोकी दिनचर्या दिनप्रतिदिन बदलती जा रही है। किसी न किसी काम की वजह से भोजन करने का भी समय नही होता है ऐसा सा हम सुनते रहते है । अरे भाई , आप पैसे के पीछे भाग रहे हो परन्तु अगर भोजन ठीक से नही कर रहे हो तो उन पैसो का क्या मतलब है। शरीर का स्वस्थ्य होना तथा मन की शांति ही आज के समय मे सबसे बड़ी संपति  है । हमारे शास्त्रकार भी यही समझते है। ‘ शरीर माध खलु धर्म साधनम ’ । आयुर्वेद मे भोजन करने की विशेष प्रणाली बताई हुई है । इस के अनुसार भोजन करने से सामान्यत : निरोग रह सकते है । अगर बीमार होते है तो भी जल्दी स्वस्थ्य लाभ हो जाता है ।

हमें अपने बच्चो को भी बचपन से ही खाना खाने की योग्य विधि हमे समझनि चाहिये। क्योंकि बच्चे बचपन मे जो संस्कार पाते है वो बड़े होने के बाद भी वैसे ही बने रहते है । हमारी भारतीय भोजन शैली Indian Food Tradition  पाश्चात्य संस्कृति से भिन्न है, हमे उसी सर्वश्रेष्ठ संस्कृति का पालन करना चाहिये । और बच्चों को भी सिखाना चाहिये।

यहाँ हम आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने की श्रेष्ठ विधि बता रहे हैं। 

आयुर्वेद के भावप्रकाश ग्रंथ मे वर्णीत भोजन की विधि :- The method of Indian food described in the Bhavaprakash Granth of Ayurveda

  • भोजन का समय होने पर मांगलिक पदार्थो का दर्शन करे ; ब्राह्मण, गाय, अग्नि, पुष्पो की माला, घी, सूर्य, जल तथा राजा – ये अष्ट मंगल है। इनके दर्शन करने से आयुष्य की वृद्धी  होती है ।
  • भोजन कक्ष शांत, स्वच्छ  होना चाहीये ।  जानु के जीतने उच्च आसन पर भोजन थाली रखकर योगी समान आसान पर बैठ कर यज्ञ मे आहूती के जैसे न तो ज्यादा न तो अल्प ग्रास लेकर भोजन करना चाहीये । 
  • भोजन के वेग को रोकने से शरीर मे दर्द होता है, अरुची होती है, श्रम लगता है, निद्रा जैसा अनुभव लगता है, शरीरकी सप्त धातु मे जलन होती है । बल का नाश होता है । जो व्यक्ति भूख लगाने पर भोजन नही करता उसके शरीर की अग्नि , अन्नरूप लकड़ी का नाश होने पर मंद हो जाती है । शरीर का अग्नि पहले आहार का पाक करता है, आहार न होने पर दोष का पाक करता है, दोष न होने पर धातु पाक होता है धातु न होने पर प्राण का पाक हो कर जीवन का नाश होता है ।
  • खाया हुआ भोजन तृप्ति देने वाला, बल देनेवाला, याददास्त, आयुष्य, शरीर का वर्ण, उत्साह , धीरज तथा शोभा को बढ़ानेवाला होता है ।
  • सामान्यत: भोजन दिन मे दो बार करना चाहीये । दो बार का भोजन करना वह अग्निहोत्र के समान है । मध्याह्न के समय जब सूर्य सिर पर आता है वह  समय पर भोजन अवश्य लेना चाहीये ।
  • दूसरा ये भी कहा जाता है की जब भूख लगे तभी खाना चाहिये । बिना भूख के भोजन नाही करना चाहिये । पहले खाया हुआ भोजन हजम होने के लक्षण जैसे की उद्गार शुद्धि, उत्साह, अपान वायु निर्गमन, शरीर मे हल्कापन का लगना, भूख तथा प्यास लगना ।  ये लक्षण होने पर ही भोजन करना चाहीये ।
  • आहार हमेशा एकांतवास मे करना चाहीये ।
  • माता, पिता, मित्र, वैध्य, रसोई बनानेवाला, हंस, मोर चकोर पक्षी की नजर भोजन पर पड़े तो वह अच्छा है ।
  • गरीब, भूखा व्यक्ति, पापी, रोगी, मुर्गा आदि की नजर भोजन पर पड़े वह अच्छा नही है ।
  • भोजन करने से पहले अदरख तथा लवण (नमक) मिश्रीत करके खाना चाहिये । वह हितकारी, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, तथा जीहवा एवं कंठ को साफ करनार तथा भोजन पर रुचि उत्पन्न करनेवाला होता है ।
  • भोजन करने से पहले ये श्लोक बोलने चाहीये :-

 

अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः

इति सञ्चिन्त्य भुञ्जानं दृष्टिदोषो बाधते  ॥

अन्न ब्रह्मास्वरूप है रस विष्णु स्वरूयप है  तथा जो भोजन लेता है वह शिव स्वरूप है

ऐसा चिंतन कर के जो भोजन लेता है उसे खराब द्रष्टि के दोष नही लगते है ।

 

अञ्जनागर्भसम्भूतं कुमारं ब्रह्मचारिणम्

दृष्टिदोषविनाशाय हनुमन्तं स्मराम्यहम्  ॥

अंजनी के गर्भ से उत्पन्न , कुमार स्वरूप , आजीवन ब्रमचारी धर्म का पालन

करनेवाले हनुमान का स्मरण कराने वाले हमारे सभी प्रकार के द्रष्टिगत दोष को दूर करे ॥

 

indian food tradition

  • चित्त को एकाग्र रखकर पहले मधुर , बीच मे अम्ल रस तथा अंत मे तीखा, कडुआ  तथा कषाय रसयुक्त भोजन करना चाहीये । 
  • भोजन मे अनार जैसे फल पहले खाना चाहिए । केला तथा ककड़ी का भोजन मे त्याग करना चाहीये। अभी के समय मे भोजन के पहले ककड़ी का सलाड देते है बह आयुर्वेद के मत से अलग है । कमल का नाल, ओर अन्य कंदमूल, गन्ना  आदि पदार्थ भी भोजन मे पहले खाना चाहिये । भोजन के बाद ये पदार्थ नही खाने चाहिये ।
  • भोजन के बाद आटे के बने पदार्थ भी नही खाना चाहिये ।
  • भोजन मे पहले घी से बने कडे मोदक जैसे पदार्थ बाद मे नरम पदार्थ  तथा अंत मे प्रवाही पदार्थ खाये । ये नियम रखने से नीरोग रह सकते है ।
  • स्वादिष्ट भोजन मन को प्रसन्न, शरीर के बल को बढ़ाता है तथा शरीर की पुष्टि करता है । उत्साह बढ़ाता है। आयुष्य की वृद्धि करता है ।
  • ज्यादा गरम अन्न बल का नाश करता है । ठंडा भोजन पचाने मे देर लगती है । ज्यादा द्रव बहुल भोजन ग्लानि करता है ।
  • ज्यादा जल्दी मे या बहुत धीरे धीरे भोजन नही करना चाहीये ।
  • जिसकी जठाराग्नि मंद है उसे भारी पदार्थ नही खाने चाहीये ।
  • चूष्य, पेय, लेही, भोज्य, भक्ष्य, चर्व्य एसे छ: प्रकार के भोजन द्रव्य है । 

( गन्ना जो  चूसने योग्य  है , शर्बत पीने योग्य  है , श्रीखंड चाटने योग्य  है , दाल भात भोज्य है , लड्डू- मोदक भक्ष्य है  तथा चना जैसे पदार्थ चर्व्य  है । )

  • मात्रा से युक्त भोजन करना चाहिए । ज्यादा भोजन करने से आलसी बन जाते है, शरीर भारी होता है तथा पेट मे आवाज आती है। आध्मान होता है । मात्रा से कम भोजन लेने से शरीर मे दौर्बल्य होता है तथा बल का क्षय होता है ।
  • निश्चित समय के पहले भोजन करने से शरीर अशक्त होता है , सिर मे दर्द होता है , पेट के अन्य रोग होता है ।       
  • निश्चित समय के बाद मे भोजन करने से भोजन का पाचन ठीक से नही होता तथा दूसरे समय पर भोजन करने की इच्छा नही होती ।
  • पेट के चार भाग की कल्पना कर के दो भाग अन्न से, एक भाग प्रवाही से एक भाग वायु के लिये बाकी ररखना चाहिए ।
  • भोजन करते समय बीच मे थोड़ा पानी आचमन करना चाहिये जिससे अन्न का स्वाद एवं रुचि बनी रहे ।
  • ज्यादा पानी पीने से या बिलकूल पानी नही पीने से अन्न का पाचन ठीक से नही पता है ।
  • भोजन के पहले पानी पीने से अग्नि मंद होता है तथा शरीर दुर्बल होता है । भोजन के बीच मे पानी पीने से अग्नि प्रदीप्त होता है । भोजन पश्चात पानी पीने से शरीर मे मेद  की वृद्धि  होती है ।
  • भोजन करने के बाद मुखशुद्धि के लिये आचमन करना चाहिये। तथा दांत मे कुछ जमा हुआ है उसे गन्डूष – कुल्ले कर के निकाल देना चाहीये ।
  • भोजन करने के बाद इस श्लोक का पठन करे ।

 

विष्णुरात्मा तथैवान्नं परिणामश्च वै यथा

सत्येन तेन मद्भुक्तं जीर्यत्वन्नमिदं तथा 

 आत्मा, अन्न ओर उसका परिणाम वह विष्णु ही है “ ये सत्य के प्रभाव से

मैंने जो अन्न खाया है वह अछे से पाचन हो जाये ।

 

अगस्तिरग्निर्वडवानलश्च भुक्तं ममान्नं जरयन्त्वशेषम्

सुखं मे तत्परिणामसम्भवं यच्छन्त्वरोगं मम चास्तु देहम् 

अगस्त्स्य ऋषि , अग्निदेव, समुद्रमे रहनेवाला वडवानल अग्नि, मेरे लिये हुये भोजन का

अच्छे से जारण- पाचन करे तथा उसके परिणाम स्वरूप रोग को दूर कर सुख की प्राप्ति करावे ।

 

 अङ्गारकमगस्तिं पावकं सूर्यमश्विनौ

पञ्चैतान्संस्मरेन्नित्यं भुक्तं तस्याशु जीर्यति 

इत्युच्चार्य स्वहस्तेन परिमार्ज्य तथोदरम्

अंगारक- मंगल गृह, अगस्त्य ऋषि, अग्निदेव, सूर्यदेव, अश्विनीकुमार ये पाँच का स्मरण

भोजन के बाद करने से दीर्घ जीवन मिलता है। ये श्लोक का पठन कर के अपने हाथो से उदर पर परिमार्जन करे – उदर पर हाथ फेरे।

 

  • ये श्लोक का पठन करके अपने उदार पर हाथ फेर कर परिश्रम रहित काम करने चाहिए ।
  • भोजन करने के पश्चात सुपारी, कपूर, जायफ़ल, लौंग, आदि सुगंधित पदार्थ से युक्त   नागरवेल के पत्तों मे मिलाकर अवश्य खाये ।
  • भोजन के बाद सो कदम अवश्य चले जिससे किया गया भोजन व्यवस्थीत पच जाता है ।
  • भोजन पश्चात बेठे  रहने से आलस  होता है, सोने से शरीर पुष्ट होता है , सो कदम चलने से आयुष्य बढ़ता है । ओर भागने से मृत्यु होता है ।  

इस तरह विधि पूर्वक उचित भोजन करने से व्यक्ति स्वयं तथा बच्चों  को स्वस्थ रखने का पहला पाठ सीख सकता है । आज के जमाने मे रोग प्रतीकार शक्ति बढाने हेतु , स्वस्थ रहने हेतु इस ये भोजन विधी Indian Food Customs का पालन करना अति आवश्यक है । अन्न को औषध समझ कर ग्रहण करे तो औषध को आहार के जैसे लेने की जरूरु नही पड़ेगी । अर्थात् आप भोजन को अपने स्वस्थ्य जीवन का आधार समझे।

आज का युग ऐसा है जहाँ हम न तो अपने भोजन का ध्यान रखते हैं न हि हमारे बच्चों के भोजन का। हमें चाहिए कि भले हम जितने भी गार्डन बन जाए। हमारी पारम्परिक Indian food भोजन पद्धति को नही भूलना चाहिए। उसी से हमें बल प्रदान होता है। तो आइए हम अपनी भारतीय परम्परा में भोजन करने की विधि Customs of food in indian tradition को अपना कर स्वस्थ्य जीवन जीते हैं।   

 

Dr. Hardik Bhatt

आप को अपने बच्चें के स्वास्थ्य संबंधी कोई भी समस्या हो तो आप हमे निचे दिए गए E – Mail पर संपर्क कर सकते है | हमारे अनुभवी Doctor आप के बच्चे की समस्या का योग्य निदान करेंगे |

E – Mail : hello@crazykids.in

Post a Comment