
बच्चों में कान दर्द की समस्या और उपाय
बच्चों की हर तकलीफ़ का ध्यान रखना माता – पिता की ज़िम्मेदारी होती है I कई बार किसी संक्रमण की बीमारी के कारण बच्चा बार बार रोता है पर हम समझ नहीं पाते की उसे क्या तकलीफ़ है I बहुत बार ऐसा भी है कि कई तकलीफ़ों को बच्चा इशारे से भी बता देता है जैसे कि यदि बच्चा बार बार कान खिच कर रो रहा है तो निश्चित ही उसके कान में दर्द है I क्योंकि कान में दर्द (Ear Pain) होना आम बात है I जैसे कि सर्दी की कारण, या कान में पानी जाने के कारण या किसी संक्रमण के कारण ५ साल से कम आयु के ४० प्रतिशत बच्चों में कान की दर्द (Ear Pain) की समस्या होती है I
कान का दर्द (Ear Pain) अत्यंत पीड़ादायक होता है I इसका इलाज जितना जल्दी हो उतना बच्चे के लिये लाभदायक होता है I बच्चे के कान में दर्द (Ear Pain) हो तब doctor से सलाह लें परंतु साथ में कुछ घरेलू उपाय भी करें I यहाँ कई तरह के घरेलू उपायों को हम बता रहें है I जिससे आप अपने बच्चे की कान की तकलीफ़ कम कर सकते है I यहाँ हम आपको बच्चों में कान दर्द की समस्या और उपाय (Ear Pain) बता रहें है जिससे आप धीरज के साथ अपने बच्चे के कान के संक्रमण infection से होने वाले दर्द और तकलीफ़ से बच्चे को दूर रख सकते है।
कान की रचना को देखते माना जाता है की बड़े कान पुरुषों के लिये भाग्यशाली होते हैं और छोटे कान स्त्रियों कीसुन्दर ता में चार चाँद लगा देते हैं । पशुओं की खोपड़ी के बाहरी बाजू के स्नायुऐच्छिक होने के कारण उन के कानों में एक विशेषता यह होती है कि पशु अपने कान जहाँ से आवाज आती है, उस दिशामें मोड़ लेते हैं, परंतु मनुष्य के स्नायुअनैच्छिक होने के कारण बाहरी कान का उपयोग आवाज की लहरों को एकत्रित कर उन्हें (आडीटरी) की ओर भेज नेमें ही होता है ।कर्णेन्द्रिय पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ में से कान भी एक कोमल इन्द्रिय है, इसलिये इसकी विशेष सावधानी से रक्षा करनी चाहिये ।कानसे खिलवाड़ नहीं करना चाहिये अन्यथा यह छेड़-छाड़ जीवन भर के लिये आपको बहरा बना सकती है ।
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कान की रचना :- (Ear Design)
पंचमहाभूत मे से कान आकाश की महाभूत का प्रधान अवयव है । कान को तीन भाग मे बांटा गया है। जो बाहर हमे दिखता है वो बाह्य कर्ण, कान की नली से कर्ण पटह तक का मध्य कर्ण तथा कर्ण पटह से मस्तिषक तक का भाग अंत: कर्ण । जिसे हम कान कहते हैं वह तो केवल सुनने वाले यन्त्रका बाहरी भाग है । इसमें कई पर्त और घूमाव होते हैं ।बाहरी कान से एक नली अंदर (मध्यकानमें) जाती है । कान की नली के अंदर जा कर तीन धूमाव ले कर अंदर रहे तीन छोटे छोटे अस्थि के साथ जुड़ी हुई होती है । जिससे आवाज के तरंग टकराते है। इसके आगे एक पतली झिल्ली होती है जिसे हम कानका पर्दा के नाम से जानते है । यह झिल्ली बहुत ही कोमल होती है, इसके आगे कान से मस्तिषक तक संदेशा ले जाने वाली चेता तंतुए होती है जो आवाज की तरंगो को बाहर से मस्तिषक तक ले जाती है । ओर हमे आवाज का ध्यान होता है । बारह नाड़ी-तन्तुओं की जोड़ियाँ मस्तिष्क में से निकलती हैं, उनमें से आठवाँ कानका संवेदवाहक नाड़ी तन्तु है ।
कान के रोग होने के कारण एवं सावधानी :- ( Ear Diseases And Caution)
कान के बाहरी भाग से कान की झील्ली तक के मार्ग से दिनभर में अनेक प्रकार की धूल और हानिकारक कीटाणु जमा हो जाते है । यदि यह धूल के कण ( जिसे कानका मैल भी कहते हैं ) निरंतर कई दिनों तक जमा होता रहता है जो इसे साफ नहीं किया जाय तो यह कण का रोग बन जाती है, जिससे कान में दर्द, (Ear Pain) फुंसियां, यहां तक कि बहरापन भीहो सकता है ।
आप के कान में तकलीफ न हो उसके लिये कुछ सवाधानियाँ बरतनी चाहिये जैसे कि :-
- कान पटी पर जोर से तमाचा मार ने से पर्दे पर आघात पहुँचता है, क्योंकि यह झिल्ली बहुत ही कोमल और नर्म होती है ,
- कान का मैल निकाल ने के लिये कान में पिन, पेंसिल या कोई नुकीली वस्तु कभी भी नहीं डाल नी चाहिये ।बल्कि, कान में कुछ दिनों तक सरसों का तेल , तिल्ली का तेल , नारियल या जैतून किसी भी उपलब्ध तेल की मामूली गर्म करके ठंडा हो जाये तब एक-एक बूंद डालने से कान का कड़ा मैल मूलायम होकर ऊपर आ जायगा। तब कुछ समय बाद आप स्वच्छ रूई की फुरेरी से बड़ी सरलता से निकाला जा सकता है ।
- यदि कान तथा नली में सूजन हो तो उसे भी गनेसे बचाना जरूरी है ; जैसे नदी, तालाब या स्वीमींग पुल के पानी में तैरते समय वैसलीन या तेलसे भिगोई हुई रूई कानों में लगानी चाहिए ।
- हमेशा ही स्नान के बाद कान को अच्छी तरह पोंछकर सुखा लेना चाहिये ।
- जुकाम से सावधान रहिये-साधारण जुकाम में गला खराब हो जाने पर एक ग्लास हल्के गर्म पानी में थोडा सा नमक डाल कर गरारा दिन में डॉ तीन बार करें , जिससे सर्दी कि असर कान तक न पहुच पाये ।
- अक्सर जुकाम बिगड़ कर हमारे कोमल कानों को भी पीड़ित कर देता है, क्योंकि कानके अंदर का हिस्सा गलेकेबाहर के हिस्से के साथ जुड़ा हुआ है ।
- सामान्यतः निगल ने की क्रिया करते समय प्रत्येक बार वायुका आना-जाना बना रहता है, जिससे कर्ण पटकेदोनों ओर समान दबाव बना रह कर स्वर की ध्वनि कम्पन के लिये सुग्रहीता बनी रहती है और जब जुकाम के कारण हमारा गला भी पीड़ित हो तो दाब-क्रिया-विधि में गड़बड़ होने से कान में दर्द हो जाना स्वाभाविक है ।
- बहुत जोर से नाक कभी न छीकें कीटाणु मध्य कान तक पहुँच सकते हैं ।मध्य कान में दोना नलियाँ जातीहैं | एक पीछे की तरफ और दूसरी नाक तथा गले की ओर । जुकाम होने पर इसके कीटाणु नाक और गले से इस दूसरी नली में पहुँच जाते हैं , जिससे वहाँ सूजन होने पर पीड़ा होने लगती है एवं लापरवाही करने पर यहफोड़ा बन जाता है , जिसकी पीड़ा के कारण रात को ठीक से नींद नही आती और रोगी बेचैन रहता है ।
- कान में सूजन होने, पूय बढ़ जाने और पूति दूषित (Cystic) हो जाने से कान का मार्ग बंद हो सकता है, जिस से उस में से हो कर वायु का आवागमन बंद हो जाता है , जब कि इस प्रकार की वायु का आवागमन कर्ण पट के दोनों ओर बाह्य कर्ण तथा मध्य कर्ण में समान दाब (Pressure) बनाये रखने के लिये आवश्यक होता है ।
- मध्य कर्ण में दूषित उत्पन्न होने से जब उसे निकलने का मार्ग नहीं मिलता है तो उसके दबाव से कोमल झिल्ली फट जाने की संभावना रहती है और कान से जीर्णस्राव उत्पन्न हो जाता है ।
- मध्य कान में मवाद का बनना और इकट्ठा होना यदि शीघ्र नहीं रोका जाय तो वह कान के पीछे की हड्डी तक पहुंच कर एक फोड़े का रूप ले लेता है । इस में यदि असावधानी की गयी अथवा गलत-सलत उपचार किया गया तो मध्य कर्ण मे मवाद बनाना शुरू हो जाता है और ऑपरेशन की नौबत आ सकती है |
- मलेरिया बुखार में लगा तार कुनैन-जैसी औषधि न लेने से भी चक्करआना, कम सुनायी पड़ना आदि रोग घर कर जाते हैं । इसी तरह इन्फ्लूएंजा और खसरा-जैसे छूत की रोगों के साथ-साथ कान में भी सूजन-जलन हो जाती है , जिससे कान में असहनीय पीड़ा होने लगती है ।
- बच्चों के दांत में कष्ट होने या नया दाँत निकलते समय भी कान में दर्द हो जाता है, बिना जाने यह पता लगाना कठिन है कि कान की पीड़ा सूजन और जलन की अधिकता के कारण है या दाँत में कष्ट होने के कारण ।
- कान पर कभी भी कोई आघात न लगना चाहिए। कई बार देखा गया है की टीचर द्वारा स्कूलमे कानपटी पर तमाचा मारने से बच्चोमे बाधीर्य हो जाने कि संभावना रहती है कभी भी कान पर किसी प्रकार का प्रहार न होने दे।
- बच्चे के कान में पीड़ा होने पर किसी योग्य चिकित्सकका परामर्श लेना चाहिये ।
- बच्चों अथवा बड़ों के कान-सम्बन्धी दोषों को उत्पन्न न होने देना ही समस्याका समाधान है , क्योंकि एक बार कर्णप्रणाली के क्षतिग्रस्त होने से उसे फिर से पहले जैसा बनाना कठिन होता है । अतःसरल घरेलू एवं प्राकृतिक उपचार का सहारा लेकर अपने बच्चो के कान का ध्यान रखना चाहियें |
सरल प्राकृतिक चिकित्सा :- (Simple Naturopathy)
(१) मुँह को पूरा खोलने और बंद करने की प्रक्रिया को नित्य १५-२० बार प्रात सायं (Morning & Evening ) दोहरायें । इससे कानों की मांसपेशियों में लचीलापन आयेगा और कान स्वस्थ होंगे ।
(२) भोजन करते समय चबा-चबा कर खाएं । जिससे मुख की मांसपेशियों के साथ-साथ कान की न सोंका भी व्यायाम हो जाए ।
(३) गर्दन को दायें-बायें, आगे-पीछे तथा घड़ी के पेंडुलम की तरह और चक्राकार घुमाने से कान एवं नेत्र की नसों में लचीलापन आता है और यह क्रिया उन में स्वस्थ रखने की क्षमता बनाये रखती है । यह व्यायाम नित्य दस मिनट मेरुदंड (spinal cord) को सीधा रखकर अवश्य करना चाहिये ।
(४) कान के दर्द (Ear Pain) में गर्म पानी की थैली को सूखे तौलिये में लपेट कर तकिये के नीचे रख कर जिस कान मेंदर्द और सूजन हो उसी कान को उस पर रखकर १५-२० मिनट तक लेटे रहें । यदि दोनों कानों में पीड़ा हो तो बारी – बारी से इसी प्रकार दोनों ओर यह प्रक्रिया करना चाहिये । ऐसे समय में कान में रुई डांल दें ।
(५) मध्य कान से पीप आने की अवस्था (Both infection and inflammation) में गर्म और ठंडेपानी की अलग-अलग थैली कान के पृष्ठ-भाग (जबड़े की रेखा के पीछे) के पास रख कर बारी – बारी से गर्म और ठंडा सेंक दे सकते हैं ।
(6) नियमित रूपसे भ्रामरी प्राणायाम करे , ये प्राणायाम कान के लिए बहुत लाभदायी और उपयोगी है ।
कान की तकलीफ को दूर करने के कुछ घरेलू उपचार :- ( Home Remedies to Relieve Ear Pain)
चिकित्स कों के अनुसार आप निम्न उपचार भी कर सकते है |
(१) बच्चे (शिशु) के कान में दर्द हो तो माता का दूध कान में टपकाने से लाभ होता है ।
(२) दूध की भाप से कान को सेंकने से कान की सूजन और दर्द में आराम मिलता है ।
(३) नीम के पत्तों को पानी में डालकर उसे उबले फिर उसकी भाप कान में लेने से कान का घाव और दर्द दूर होते हैं ।
(४) लहसुन का रस २५ मिली और सरसों का शुद्ध तेल ५ मि ली दोनों मिला कर पकालें । जब तेल मात्र शेष रह जाय तब ठंडा होने पर छान लें तथा रात को सोते समय एक –एक बूँद कान में डालें । इससे कान का दर्द, बहरापन आदि दोष दूर होते हैं ।
(५) गो मूत्र के छान कर निथार लें और शीशी में भरलें । नित्य चम्मच में कुछ बूंदें थोड़ी सी गर्म कर , फिर कान कोसाफ करके सुहाती-सुहाती दो-एक बूँदें दोनों कानों में डाले । कान का दर्द अथवा बहरापन निश्चित ठीक होता है ।
(६) मदार ( Madar) का पीलापत्ता तोड़ कर उस पर देशी घी लगा कर पत्ते को तवे पर रख पत्ते को हलका से गर्म करे उसका सुहाता (bearable) गुन गुना रस कान में टपका डालें । अनंत प्रयोग है –दर्द में लाभ होगा । इस पर एक लोक पंक्ति भी है |
पीले पात मदार के, घृत काले पल गाय ।
गरम गरम रस डालिये, कर्ण–दर्द मिट जाय ।।
(7) अजवाईन 20 gm को सरसो के 50gm मिलाके गरम करके पका ले। छानकर बोटल भर में ले । रोज रात को सोते समय 2 बूंद कान मे डाले । इससे कान के दर्द मे लाभ होता है ।
(8) अजवाइन की पोटली सूंघने से भी लाभ होता है ।
निषेध:- (Prohibition)
कान के रोगी को निम्न आहार-विहार का सेवन हानिकारक होता है ।
(१) ठंडास्नान, ठंडीहवा, पंखे की सीधी हवा आदि
(२) तैराकी और सीरिया भिगोकर स्नान।
(३) अधिक जागरण तथा अधिक वाचालता।
(४) कोलाहल पूर्ण वातावरण–यंत्रों का शोर-शराबा आदि।
(५) अत्यधिक शीतलता प्रदान करने वाले बर्फ आदि से प्रयोग युक्त पदार्थ, चिकनाई वाले व्यञ्जन, बासीभोजन, अधिकखट्टे एवं मिर्च-मसालों से तले हुए खाद्य पदार्थ आदि।
(६) वातानुकूलित वातावरण में लम्बें समय तक रहना |
उपसंहार :- Conclusion
शिर: श्रवण: पादेषु अभ्यंगम नित्यं आचरेत ।
आयुर्वेद के हिसाब से शिर – मस्तक, शरण- कान तथा पाँव पर नित्य अभ्यंग मालिस करनी चाहिए
बचपन से ही प्रतिदिन कानों में एक-एक बूंद तेल डाल ते रहने से कान सदा नीरोग रहते हैं । श्रवण शक्ती सदा के लिये सशक्त बनाये रखने के हेतु नित्यप्रातःधूप का सेवन करें ताकि कानों पर भी सूर्यका हलका प्राकृतिक सेंक होता रहे ।
इस प्रकार दोष पूर्ण आहार से बचकर हम स्वस्थ्य रह सकते हैं | हमने आप को बच्चों में कान की दर्द और उसके उपाय के विषय में थोड़ी जानकारी दी हैं | जिससे आप सावधानी पूर्वक अपना और अपने बच्चें का ध्यान रख सकते है | संस्कृत में एक उक्ति है – शरीर माधं खलु धर्म – साधन अर्थात आपका शरीर स्वस्थ्य है तो आप उत्साह से अपनी दिनचर्या कर सकते हैं |
Dr. Hardik Bhatt
आप को अपने बच्चें के स्वास्थ्य संबंधी कोई भी समस्या हो तो आप हमे निचे दिए गए E – Mail पर संपर्क कर सकते है | हमारे अनुभवी Doctor आप के बच्चे की समस्या का योग्य निदान करेंगे |
E – Mail : hello@crazykids.in
Heer Trivedi
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Jyotsana Raval
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