
पानी पीनें का सही तरीका
आज के इस आधुनिक युग में water पीने के अलग अलग तरीक़े खोज रखे हैं। हम सभी को पता है कि पानी (Pani) हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। पानी के बिना हमारा जीवन कुछ भी नही है। पानी हमारे लिये अत्यंत ज़रूरी है। पानी की कमी से हमारे शरीर में अनेक प्रकार के रोग भी हो सकते हैं। यहाँ हम आयुर्वेद के अनुसार पानी पीने का सही तरीक़ा और औषधि तथा आहार के बाद पानी पीने का सही तरीक़ा हमारे जीवन में पानी का महत्व importance of water in our life बताने जा रहे हैं।
आज कल पानी पीने के बहुत अलग अलग तरीके लोग बता रहे है। आयुर्वेद के हिसाब से water पीने के सही तरीके तथा औषधी तथा आहार के बाद पानी तथा अन्य द्रव्य लेने के तरीके आज हम जानेंगे ।
तदादौ कर्शयेत्पीतं स्थापयेन्मध्यसेवितम् ||४३८||
पश्चात्पीतं बृंहयति तस्माद्वीक्ष्य प्रयोजयेत् |४३९|
स्थिरतां गतमल्किन्नमन्नमद्रवपायिनाम् ||४३९||
भवत्याबाधजननमनुपानमतः पिबेत् |४४
न पिबेच्छ्वासकासार्तो रोगे चाप्यूर्ध्वजत्रुगे ||४४०||
क्षतोरस्कः प्रसेकी च यस्य चोपहतः स्वरः |४४१|०|
पीत्वाऽध्वभाष्याध्ययनगेयस्वप्नान्न शीलयेत् ||४४१||
प्रदूष्यामाशयं तद्धि तस्य कण्ठोरसि स्थितम् |स्यन्दाग्निसादच्छर्द्यादीनामयाञ्जनयेद्बहून् ||४४२||
भोजन के पहले पानी पीने से शरीर कृश होता है । भोजन के मध्य मे पानी पीने से शरीर मध्यम रहता है । भोजन के अंत मे ज्यादा water पीने से शरीर की वृदधी होती है । इसलीये ये सब बाते ध्यान मे रखकर पानी पीना चाहिये । भोजन करते समये पानी का उपयोग कम करना चाहिए।
अगर भोजन करते समय water नही पीते तो भोजन क्लीन्न द्रव नही होने से शरीर मे तनाव उत्पन्न करता है । इसलिये भोजन करने से पहले अवश्य पानी अथवा अन्य द्रव्य लेना चाहिये ।
pani / water के तुरंत बाद घूमना, ज्यादा भाषण करना, पढ़ाई करना, गीत गाना, निद्रा का सेवन करना ये सभी काम नही करने चाहिये । ऐसा करने से उदर तथा छाती मे गौरव होता है । पेटमे जललीय स्त्राव बढ़ता है । जठराग्नि मंद होती है । सर्दी – उल्टी होती है । होने की संभावना रहती है।
अनु-पानं हिमं वारि यव-गोधूमयोर् हितम् ॥ ४७ ॥
गेंहू तथा यव – जौ के बने पदार्थ खाने के बाद ठंडा पानी अनुपान के लिये पीना हितकर है ।
दध्नि मद्ये विषे क्षौद्रे कोष्णं पिष्ट-मयेषु तु ।
शाक-मुद्गादि-विकृतौ मस्तु-तक्राम्ल-काञ्जिकम् ॥ ४८ ॥
इसी तरह दही, विष, मध्यपान, शहद तथा अन्य आटे के बने पदार्थ खाने के बाद ठंडा water पीना हितकर है ।
सभी प्रकार की सब्जी तथा दाल वगैरह खाने के बाद दही का पानी, छाश , कांजी तथा अन्य खट्टे द्रव पीना हितकर है ।
कोष्णं पिष्ट-मयेषु च सुरा कृशानां पुष्ट्य्-अर्थं स्थूलानां तु मधूदकम् ।
शोषे मांस-रसो मद्यं मांसे स्व्-अल्पे च पावके ॥ ४९ ॥
शरीर से दुर्बल व्यकित को भोजन के बाद शहद डालकर पीना चाहिये । तथा मोटे लोगो को पानी के साथ शहद मीलाकर water पीना चाहीये । राजयक्ष्मा के दर्दी को मांसरस पीना चाहीये ।
व्याध्य्-औषधाध्व-भाष्य-स्त्री-लङ्घनातप-कर्मभिः । क्षीणे वृद्धे च बाले च पयः पथ्यं यथामृतम् ॥ ५० ॥
बीमार व्यकित , औषध लेने के बाद , ज्यादा बोलने के बाद, समागम के बाद, उपवास के बाद, धूप मे घूमने के बाद, भारी काम करने के बाद, वृद्ध व्यक्ति को तथा बच्चो को तथा रात्री काल मे दूध का सेवन करना अच्छा माना गया है ।
विपरीतं यद् अन्नस्य गुणैः स्याद् अ-विरोधि च ।
अनु-पानं समासेन सर्व-दा तत् प्रशस्यते ॥ ५१ ॥
भोजन से विरुद्ध गुणोप वाला अनुपान प्रशस्य है परंतु वह विषकारी न होना चाहीये ।
अनु-पानं करोत्य् ऊर्जां तृप्तिं व्याप्तिं दृढाङ्ग-ताम् ।
अन्न-संघात-शैथिल्य-विक्लित्ति-जरणानि च ॥ ५२ ॥
अनुपान करने से ऊर्जा तथा तृप्ति होती है , शरीर मजबूत बनाता है तथा आहार तथा औषध द्रावी आसानीसे पाछित हो जाता है ।
नोर्ध्व-जत्रु-गद-श्वास-कासोरः-क्षत-पीनसे ।
गीत-भाष्य-प्रसङ्गे च स्वर-भेदे च तद् धितम् ॥ ५३ ॥
गले के ऊपर के भाग के रोगो मे , अस्थमा – दमा, खांसी तथा कफ विकार मे, प्रतिश्याय मे, गाते समय था गले के विकार मे अनुपान देना हितकर नही है ।
प्रक्लिन्न-देह-मेहाक्षि-गल-रोग-व्रणातुराः ॥ ५४ ॥
शरीर की साम अवस्था मे, प्रमेह रोग मे , आंखो के रोग मे, गले के रोग मे तथा व्रण वाले रोगीयो को अनुपान देना हितकर नही है ।
उष्णं वाते कफे तोयं पित्ते रक्ते च शीतलम् ||
वातज तथा कफज व्याधी यो मे उष्ण जल लेना चाहिये तथा पीठ तथा रक्त गत विकारो मे शीतल जल लेना चाहीये ।
सर्वेषामनुपानानां माहेन्द्रं तोयमुत्तमम् |४३४
सभी प्रकार के अनुपान मे बारीश का जल – माहेन्द्र जल उत्तम है ।
यथोक्तेनानुपानेन सुखमन्नं प्रजीर्यति |
रोचनं बृंहणं वृष्यं दोषसङ्घातभेदनम् ||४३६||
तर्पणं मार्दवकरं श्रमक्लमहरं सुखम् |
दीपनं दोषशमनं पिपासाच्छेदनं परम् ||४३७||
बल्यं वर्णकरं सम्यगनुपानं सदोच्यते |४३८|
Food defective or heavy or taken in excessive quantity is digested easily by the above- mentioned after-drink.
योगी अनुपान लेने से आहार अच्छी तरह से पाचित हो जाता है तथा शरीर द्वारा उसका योगी गुण होता है ।
After-drink is always relishing, weight-promoting, aphrodisiac, disintegrates the mass of dosas, produces satiety and softness, removes fatigue and exhaustion, brings happiness (health ) , stimulates digestive fire, pacifies dosas, quenches thirst, promotes strength and complexion.
अनुपान हमेशा सुख देनेवाला होता है । रुचिकर होता है । दोषो को दूर करता है । शरीर के श्रम को दूर करता है तथा सुख देता है । त्र्शा को दूर करता है । शरीर का बल बढ़ाता है । शरीर को योग्य वर्ण प्रसादन करता है ।
इस प्रकार रोग अनुसार water तथा अन्य प्रवाही द्रव्य लेने से तथा इन नियमों का पालन करने से भी अनेक रोगो से बचा जा सकता है। बच्चो कों बचपन से ही एसी आदत डालने से बच्चे हमेशा ये सीखते है जीससे उनका भविष्य मे स्वास्थ्य अच्छा रहता है ।
सुबह सुबह कई लोग 4 ग्लास पानी पी जाते है वह भी सही नाही है। प्रातकाल मे उष:पान का आयुर्वेद मे उल्लेख है परंतु वह मात्रा अनुसार है । ज्यादा नही हर व्यक्ति की अपनी प्रकृति अनुसार पानी तथा अन्य अनुपान पी सकता है । पर एक दूसरे को देख कर अपनी प्रकृति भूल कर पानी नही पीना चाहिए। प्रकृति तथा दोष के अनुसार, औषध अनुसार, ऋतु के अनुसार ये सब बाते जानकार योग्य अनुपात से water पीने से लाभ होता है। आहार तथा औषद दोनों की योग्य मात्रा का होना ज़रूरी है ।
इस तरह से सबसे पहले अपनी प्रकृति को जानकर उचित मात्रा में water पीना चाहिए। ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना हि इस तरह बनाई है कि हम किसी भी चीज़ का उपयोग यदि कम या ज़्यादा करते हैं तो वह हमारे शरीर को नुक़सान करता है। हमें किसी की योग्य सलाह के अनुसार,आयुर्वरद शास्त्र के अनुसार अथवा तो डॉक्टर के अनुसार अपने खाने पीने का ध्यान रखना चाहिये। water हमारे जीवन में अमृत समान है।
Dr. Hardik Bhatt
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Heer Trivedi
Nice article 👍