
ऋतु के अनुसार स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखें
Ritu – Indian Season सर्वांगीण हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मनुष्य के सर्वांगीण शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास का लक्ष्य रखा गया है। धर्म का स्वास्थ्य और आरोग्य से गहरा संबंध है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन जो पवित्र विचारों और शुभ संकल्पों का आधार है। उस का निवास होता है। यहां हम आपको Ritu (Season) के द्वारा आप अपने व अपने कोमल बच्चों का ध्यान रख सकते हैं क्योंकि हर ऋतु सुखदाई होती है । पर जब उसके प्रति बेदरकार हो जाएंगे तो यही Ritu (Season) आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ सकती है। इसलिए हमें ऋतु चर्या क्या ज्ञान होना बहुत जरूरी है ।
आयुर्वेद में ऋतु चर्या दिनचर्या तथा रात्रि चर्या का वर्णन मिलता है। उसका नियम पूर्वक आचरण करने से मनुष्य सदा स्वस्थ रह सकता है । प्रकृतिकृत गर्मी और ठंडी को ऋषियों ने 1 वर्ष में संवरण किया है और सूर्य एवं चंद्र की गति विभेदसे वर्ष के दो भाग किए हैं जिन्हें हम ‘अयन’ कहते हैं वह 2 है १) उत्तरायण और २) दक्षिणायन। उत्तरायण में रात्रि छोटी तथा दिन बड़े होने एवं सूर्य रश्मियों के प्रखर होने से चराचर की शक्ति का शोषण होता है, और दक्षिणायन में दिन छोटे तथा रात्रि बड़े होने से चंद्रमा की मरीचिकाएँ प्रबल होती है। जिससे प्राणियोंको बल प्राप्त होकर पोषण का कार्य स्वाभाविक रूप से स्वत: ही होता रहता है। और इनके विभागों को हम ‘ऋतु’ कहते हैं । उत्तरायण में तीन ऋतु शिशिर वसंत तथा ग्रीष्म ऋतुएँ है और दक्षिणायन में वर्षा शरद और हेमंत ऋतुएँ पढ़ती हैं। इस तरह से पूरे वर्ष में 6 ऋतुएँ होती है। और इन 6 Ritu (Season) के हिसाब से बच्चों और बड़ों के लिए आयुर्वेद शास्त्र में दोषों के संचय प्रकोप तथा उपशमन के लिए 6 Ritu (Season) को बताया है कि इन ऋतु में किस प्रकार के रोग होते हैं। और हमें किस प्रकार इनसे बचा जा सकता है विषय में हम आपको बताने जा रहे है |
अब हम 6 Ritu (Season) के विषय में बारी बारी से बताने जा रहे हैं
वसंत ऋतु :- Spring Season (चैत्र – वैशाख ) (March – April)
वसंत ऋतु Spring Season में सभी दिशाएँ रमणीय एवं नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित होती है। इस समय शीतल मंद सुगंध पवन मलायचालसे से प्रवाहित होता है। अपने इस अनुपम सुषमा एवं मनोहरता के कारण ही यह ‘ऋतुराज’ कहलाता है । शिशिर ऋतु में मधुर सन्निग्ध आहार के अधिक सेवन से और ऋतु के अनुसार कफ संचित हो जाता है। तथा वसंत ऋतु Spring Season में सूर्य की रश्मियोंद्वारा तप्त होकर कफ प्रवाह के रूप में जठराग्निको नष्ट करके अनेक प्रकार के रोगों को उत्पन्न करता है अतः इसे शीघ्र नष्ट करना चाहिए ।
इसके लिए कफ नाशक औषधियों के द्वारा अपने गले को शुद्ध करें व्यायाम करना, उबटन लगाना, सीखें और कटु, तिल, रस, ताम्बूल, कपूर ,मधु के साथ हरीतकी चूर्ण का सेवन करें श्वेत वस्त्र धारण, करें प्रातः सायं काल टहलने जाया करें क्योंकि टहलने से कफ का नाश होता है और रक्त संचार तीव्र
गति से होता है सोंठ का जल पिए शहद वाला नागरमोथा से बना काढ़ा बनाकर पियें ।
इस ऋतु में मधुर,अम्ल,स्निग्ध तथा गरिष्ठ (देर से पचने वाले) पदार्थ शीतल जल, उड़द, ओसमें में निद्रा लेना वर्जित कहा गया है इसी प्रकार से भोजन में दहीं प्राणहर होता है, वहीं न भोजन के अंत में और रात्रि में दही का सेवन ना करें।
ग्रीष्म ऋतु :- Summer Season (ज्येष्ठ – आषाढ़) (May – June )
ग्रीष्म ऋतु Summer Season में सूर्य की किरणें बहुत ही तेज होती है। अतः इनसे प्राणियों का बल एवं जगत की आद्रता का शोषण होता है। इसके परिणाम स्वरूप कफ क्षीण हो जाता है और शरीर वायु संचित होकर वृद्धि को प्राप्त होता है। जिससे विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं ।
ग्रीष्म ऋतु Summer Season में है जौ, गेहूँ, मटर, और हर कच्चा खीरा, तरबूज, ककड़ी, पेठा, करेले, लौकी, मधुररस से युक्त सिन्निग्ध, शीतल सुपाच्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए मिश्री युक्त दूध दहि या मट्ठा ठंडा शरबत वगेरे स्वास्थ्य के लिए लाभदाई होते हैं सुगंधित खस की टट्टीयों से आच्छादित घर सघन वृक्षों की छाया प्रातः शीतल जल से स्नान तथा दिन में निद्रा इस ऋतु की उग्रता को शांत करते हैं, Ritu (Season) में गुड़ का सेवन ज्यादा करना चाहिए। अधिक लवण युक्त कटु अम्ल पदार्थ अधिक व्यायाम गर्म जल से स्नान ,उपवास धूप में चलना अधिक परिश्रम का काम करना वर्ज है। इस Ritu (Season) में तिल ,तेल, बैगन, उड़द, सरसों, राईका, वगैरे भोजन भारी होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानि प्रद है।
वर्षा ऋतु :- Monsoon season (श्रावण – भाद्रपद ) (July – September)
वर्षा ऋतु Rain Season में चारों ओर हरियाली हो जाती है । गगन बादलों से ढका रहता है। दूषित जल तथा वाष्पयुक्त वायु से पाचन तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मंदाग्नि हो जाती है। तुषारपूर्ण शीतल वायु से शरीर में वायु पृथ्वी की दूषित वाष्प से और जल के अम्लपाक होने तथा जल वायु की मलिनतासे पित्त तथा अग्निमान्ध होने और पशुकीटादी के मल मूत्रादि के संसर्ग से वर्षा का जल मलिन हो जाने से कफ कुपित हो जाता है। इन दिनों वायु पित्त तथा कफ आदि के पृथक पृथक अथवा दो दो या तीनों दोषों के मिल जाने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। अतः वर्षा ऋतु Varsha Ritu में अग्नि की भली भांति रक्षा करनी चाहिए । अग्नि के शांत हो जाने से स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर होता है। अग्नि के विकृत होने से मनुष्य नाना प्रकार के रोगों से दुखी होता है। इसलिए स्वस्थ ता के लिए अपना संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक है ।
वर्षा ऋतु Rain Season में अग्नि वर्धक पदार्थों का सेवन वायु का नाशक तथा पाचक औषधियों से विरेचन लेना मूंग आदि का जूस,गेहूं , शालिचावल, और जलदही का काला नमक, पिप्पलि,पीपला मूल, सोंठ को मिक्स करके इसका जल पीना चाहिए , गर्म दूध ,करेला, नींबू, अंजीर, खजूर, आम, गुड़, परवल, सेंधा नमक वगैरह का सेवन करना चाहिए इस Ritu (Season) में उबला हुआ पानी पीना चाहिए अधिक वर्षा के समय लवण युक्त एवं स्निग्ध का प्रयोग करना चाहिए, शुष्कतामें मधु युक्त सुपाच्य द्रव्य सेवन करें । सुगंधित तेल आदि लगाकर स्नान करें, वस्त्रों को इत्रादि से सुगंधित करके धारण करना चाहिए और समय-समय पर इन्हें धूप में भी रखना चाहिए।
शरद ऋतु :- Autumn (अश्विन और कार्तिक ) (October – November)
Autum Ritu में सूर्य का रंग पीला और उष्ण होता है। आकाश निर्मल तथा श्वेत मेधों से युक्त होता है। तालाब कमलो एवं हंसों से युक्त होकर पृथ्वी वरुण सप्तपर्ण विजयासार के वृक्षों से शोभायमान होता है। तालाब नदी आदि का जल स्वच्छ होता है। सूर्य की किरणों से तप्त एवं रात को चंद्र रश्मियों से शीत अगस्त्य तारों के उदय से निर्विष होता है। वातावरण में न तो गर्मी रहती है और ना ही ठंडी खुशनुमा वातावरण हो जाता है।
इस Ritu (Season) में स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए ऋषि यों ने शतायु की कामना करते हुए 100 शरद ऋतु ओके जीने की इच्छा व्यक्त की है। बरसात में वात विकार से बचने हेतु गर्म जल वगैरह का सेवन करना चाहिए तथा पिता संचित होता रहता है। वह इस ऋतु में सूर्य की किरणों के तीक्ष्ण होने से तुरंत कुपित होकर शरीर में पित्त प्रकोपजन्य अनेक प्रकार की व्याधियों उत्पन्न कर देता है। इसलिए इस मधुर तिक्त शीतल तथा लघु आहार मीठा दूध, मिश्री, शक्कर अथवा आमला चूर्ण, यव,मूँग, धनिया सेंधव लवण ,मुनक्का, परवल, कमलनाथ, कमलगट्टा, नारियल, नदी अथवा तालाब के जल कपूर चंदन वगैरे हितकर है ।
शरद ऋतु Sharad Ritu पर उचित कारक तथा मध्यम बल उत्पन्न करती है। इसलिए इसमें पैथिक पदार्थ छोड़ देनी चाहिए पीपला मूल, मिर्च, और लहसुन, बैंगन, खिचड़ी, दही, सरसों का तेल, मध और खट्टे,तीक्ष्ण, कटु उष्ण पदार्थ व्यायाम, गुड, दिन का सोना, रात्रि जागरण क्रोध करना, धूप में चलना आहार-विहार को छोड़ देना चाहिए यह हमारे स्वास्थ्य को बिगड़ती है। ।
हेमंत ऋतु :- (Hemant Season) (मार्गशीर्ष और पौष ) (December January)
हेमंत ऋतु Hemant Season में सूर्य तुषार से प्रायः गिरा रहता है दिशाएं धूल – धूसरित होती हैं तथा शीतल पवन चलता है रात्रि अन्य रताओंकीं अपेक्षा लंबी होती है। इस ऋतु में अधिक शीतवायु के कारण रुकी हुई अग्नि देह के अंदर उसके छिद्रों से प्रेरित होकर अपने स्थान में संचित होकर प्रचंड हो जाती है। इसलिए हेमंत में वायु तथा अग्नि नाशक विधि का उपयोग श्रेष्ठ माना गया है। यहां यह भी ध्यान देना जरूरी है कि भूख के समय भोजन न मिलने पर व्यक्ति के शरीर की अग्नि उसके शरीर के अन्य धातुओं को पचाकर बलका नाश तो करती ही है साथ में बिना लकड़ी के अग्नि की तरह शांत भी हो जाती है ।
इस Ritu (Season) में मधुर ,स्निग्ध, अम्ल तथा लवण युक्त द्रव्य गेहूं तथा दूध से बने पदार्थ सेवनीय है। सोंठ के साथ हरड़ का सेवन भी करना चाहिये। प्रातः काल ताजा भोजन गरम तथा नरम वस्त्र विधिपूर्वक यथावस्यक धूप तथा अग्नि का सेवन भी जरूरी है। कठोर श्रम ,तेल मालिश तथा केशर वगैरह का लेप भी हितकर माना गया है।
इस ऋतु में कटु,तिक्त,रूक्ष अन्न से बना भोजन हल्का तथा शीतल भोजन सत्तू, उड़द, केला, आलू वगैरे का सेवन करना चाहिए। एकाहार, निराहार शीतल जल में स्नान नदी के जल का पान दिन में निद्रा ठंडे स्थानों में बिहार तथा खुले छप्परों में निवास का त्याग करना चाहिए ।
शिशिर ऋतु :- Winter Season (माघ और फाल्गुन की ऋतु) (January – February)
शिशिर ऋतु के सभी लक्षण हेमंत ऋतु के समान है बताए हैं इस Ritu (Season) में वायु तथा वर्षा से आकाश आच्छादित रहता है शीत भी अपेक्षाकृत अधिक रहती है ,कहीं-कहीं कोहरा अधिक पड़ता है। भूमि पके हुए घासों से पीतवर्ण हो जाती है पवन तथा कफ के विकार उत्पन्न होते हैं।
शिशिर ऋतु में शौच तथा स्नान आदि हेतु निर्वात स्थान एवं उष्ण जल का सेवन करें हरी चटनी का सेवन करें पकौड़ी, बढ़िया भोजन, अदरक आदि का अचार, हींग, सेंधव लवण घृतयुक्त सिन्नगध भोजन, खिचड़ी आदि का सेवन शिशिर ऋतु में हितकर होता है। हेमंत ऋतु में जो पदार्थ वर्ज्य बताए गए हैं शिशिर ऋतु में भी उन पदार्थों को नहीं खाना चाहिए। शिशिर ऋतु हेमंत ऋतु के जैसी ही होती है अतः इस ऋतु में हेमंत ऋतु में जो योग्य बताया गया है उसी का चयन करना चाहिए ।
इस तरह से यहां हमने 6 Ritu (Season) के माध्यम से आपको किस तरह से क्या खाना चाहिए इसका महत्व बताया है अतः हमें इन ऋतुको ध्यान में रखकर अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए और अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।
Dr. Karuna Trivedi
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Karuna trivedi
Nice information about Indian seasons
Karuna Trivedi
ऋतुओ के विषय मे जानकारी अच्छी दी है ।
Karuna Trivedi
Nice article for Indian season
Heer Trivedi
Kya bat hai bahut badhiya article hai