
अपने बच्चे को सिखाए सुबह की दिनचर्या
प्राचीन समय में बड़े बुजुर्गों के द्वारा बच्चों को प्रात काल उठकर अपनी दिनचर्या Daily Routine कैसे करनी है वह सिखाया जाता था | आज आधुनिक समय में बच्चे उठ कर सीधा स्नान करके स्कूल चले जाते हैं | या बड़े और बच्चे मोबाइल हाथ में ले लेते हैं | ऐसे समय में हमें प्रातः उठकर श्लोक का पाठ करने से उनमें अच्छे संस्कार का विकास होता है | जैसे (1) दिन अच्छा बीतता है | (२) दू स्वपन , पाप और भय का नाश होता है। (३) विष का भय नहीं रहता। (४) धर्म की वृद्धि होती है। (५) अज्ञानी को ज्ञान प्राप्त होता है। (६) रोग से मुक्त होता है। (७) लंबी आयुष्य की प्राप्ति होती है। (८) निर्धन धनी होता है। (९) भूख प्यास और काम की बाधा नहीं रहती। (१०) सभी दुखों से छुटकारा मिलता है।
यह सब करने से हमारे अंदर देवी शक्ति का संचार होता है और महापुरुषों के गुणों का विकास होता है। हमें प्रेरणा मिलती है कि हमें नेक रास्ते पर चलना चाहिए। भगवत गीता में कहां है कि “ स्वकर्मणा तमभ्यर्च्च सिद्धिं विंदती मानव: ”
अर्थात अपने कर्मों के द्वारा भगवान की पूजा संपन्न होने पर हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति होती है। अतः संकल्प रूप में हमें भगवान की प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यहां हम आपको अपने बच्चे को सिखाए सुबह की दिनचर्या।Teach your child the Daily routine यहाँ हम वह उदाहरण बता रहे है जैसे
(१) प्रातः जागरण : – MORNING AWAKENING
अर्थात शुभह ब्रह्म मुहूर्त में उठना पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को प्रातः काल में अर्थात सूर्योदय से 3 घंटे पूर्व तक शैया का त्याग करना चाहिए। प्रातः काल में ब्रह्म मुहूर्त तथा उषकाल की बड़ी महिमा है, इस समय उठने वाले को स्वास्थ्य धन विद्या बल और तेज बढ़ता है, जो व्यक्ति सूर्योदय के समय तक सोता है, उसकी उम्र और शक्ति घटती है तथा वह अनेक प्रकार की बीमारियों का शिकार होता है।
आयुर्वेद शास्त्र में बताया गया है कि सुबह प्रातः काल जल्दी उठने वाला व्यक्ति वर्ण, कीर्ति, बुद्धि ,लक्ष्मी ,निरोगी तथा लंबे आयुष्य को प्राप्त करता है। उसका शरीर कमल की तरह प्रफुल्लित रहता है। धर्मशास्त्र मैं भी बताया है कि ब्रह्मो मुहूतै बुद्धते अर्थात सभी को ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए। इस समय वायु अत्यंत शीतल तथा मधुर होती है। यह समय ईश्वर का चिंतन ध्यान योग प्राणायाम करने के लिए सर्वोत्तम है। इसलिए इसे ब्रह्म अर्थात ब्रह्म का मुहूर्त कहा जाता हैं। इस समय चंद्र किरणों से अमृत का क्षरण होता है। इसलिए इस काल को अमृतवेला भी कहा जाता है।
(२) कर दर्शन : – KAR DARSHAN
अर्थात सुबह उठकर अपनी (कर) अर्थात हथेली के दर्शन करना। प्रातः काल उठते ही सैया अर्थात अपने बिस्तर पर सर्वप्रथम दोनों हथेलियों के दर्शन का विधान है और इस श्लोक का पठन करें
“ कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम ”
इस श्लोक में धन की अधिष्ठात्री लक्ष्मी विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती तथा कर्म के अधिष्ठाता देव ब्रह्मा की स्तुति की गई है। इस मंत्र का आशय है की मेरे कर हाथ के आगे के भाग में देवी लक्ष्मी का निवास है हाथ के मध्य में सरस्वती का निवास है तथा हाथ के मूल भाग में ब्रह्मा निवास करते हैं। प्रातः काल में हथेलियों में इनका दर्शन करते हैं। इससे धन तथा विद्या की प्राप्ति के साथ – साथ कर्तव्य कर्म करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
हमें ईश्वर ने विवेक शक्ति इसलिए प्रदान की है की हम अपने हाथों से सदा सत्कर्म करते रहे। प्रातः काल उठते ही हमारी दृष्टि कहीं और न जाकर अपने करतल हाथों में ही देव दर्शन करें जिससे हमारी बुद्धि सात्विक बनी रहे तथा पूरा दिन शुभ कार्यों में बीते।
(३) भूमि वंदना :- BHOOMI VANDANA
अर्थात पृथ्वी को वंदन प्रणाम करें। प्रात काल उठकर कर दर्शन के अनंतर व्यक्ति को चाहिए कि वह पृथ्वी ही माता की वंदना करें क्योंकि पृथ्वी सबकी माता है, धरित्री है अचला है, उन्होंने सबको धारण कर रखा है वह सभी के लिए पूज्य है आराधना के योग्य है। भगवान विष्णु की दो पत्नियां है (१) महादेवी लक्ष्मी तथा (२) भूदेवी (पृथ्वी) शास्त्रों में कहा है कि निंद्रा परित्याग के अनंतर हमें अपने बिस्तर से भूमि पर उतरना है तो पांव रखना पड़ेगा क्योंकि उसी से आगे के कर्म संपादित हो सकते हैं। इसलिए पृथ्वी माता को वंदना करना चाहिए पृथ्वी पर पांव रखने के पूर्व हम पृथ्वी माता से क्षमा मांगते हैं और हमें इस श्लोक का पठन करना चाहिए
“ समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्य पादस्पर्श क्षमस्व में ।। ”
अर्थात हे पृथ्वी देवी आप समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली है पर्वत रूपी स्तनों से सुशोभित है तथा आप भगवान विष्णु की पत्नी है आप को मेरा नमस्कार है मेरे द्वारा होने वाले पादस्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।
(४) मंगल दर्शन एवं गुरुजनों का अभिवादन : – MANGAL DARSHAN AND GREETINGS FROM GURUS
प्रातः जागरण के बाद यथासंभव मांगलिक वस्तुएं जैसे गो तुलसी पीपल हो उनका दर्शन करना चाहिए । तथा घर में माता पिता एवं गुरुजनों अपने से बड़ों को प्रणाम करना चाहिए। अभिवादन अर्थात प्रणाम करने वाले तथा नित्य वृद्ध पुरुषों की सेवा करने वाले व्यक्ति को आयु विद्या कीर्ति और शक्ति इन चार की प्राप्ति होती है। अपने दोनों हाथों को एक दूसरे पर रखते हुए दाहिने हाथ से दाहिने पैर का तथा बाएं हाथ से बाएं पैर का स्पष्ट करते हुए अभिवादन करें। विज्ञान की दृष्टि से मनुष्य के शरीर में रहने वाली विद्युत शक्ति पृथ्वी के आकर्षण के द्वारा आकृष्ट होकर पैरों से निकलती रहती है। दाहिने हाथ से दाहिने पैर का और बाएं हाथ से बाएं पैर का स्पर्श करने पर वृद्ध पुरुष के शरीर की विद्युत शक्ति का प्रवेश प्रणाम करने वाले पुरुष के शरीर में सुगमता से हो जाता है। इस शक्ति के साथ विरुद्ध पुरुष गुरुजन के ज्ञानादि सद्गुणों का भी प्रवेश हो जाता है। विद्युत शक्ति मुख्य रूप से पैरों द्वारा निकलती है इसलिए हमारी संस्कृति में पैर छूने का विधान है। गुरुजनों और विरुद्ध बड़े लोगों को प्रणाम करने से वह प्रसन्न होकर अपने दीर्घकालीन जीवन में संपादन किए हुए ज्ञान का दान प्रणाम करने वाले को देते हैं।
(५) उष: पान :- USH: PAAN
आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व तथा शौच से पहले जल पीने की विधि बताईगई है। रात्रि के ताम्रपत्र ( तांबे के बर्तन में) ढक्कन रखा हुआ जल प्रातः काल कम से कम आधा लीटर अथवा संभव हो तो सवा लीटर तक पानी पीना चाहिए इसे उष पान कहा जाता है। इससे कफ वायु एवं पित्त का नाश होता है तथा व्यक्ति बलशाली एवं दीर्घायु होता है । मल साफ हो जाता है पेट के विकार दूर होते हैं । भारतीय शास्त्रों में कही गई सभी बातें वैज्ञानिक है । धार्मिक है और विज्ञान की कल्पना से भी बाहर है ।
(६) शौचाचार :- TOILET
इसके बाद मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। मल मूत्र का त्याग करते समय सिर को कपड़े से ढक लेना चाहिए। अथवा जनेऊ को बाएं कान से सटाकर सिर के ऊपर से दाहिने कान में लपेट लेना चाहिए। इस क्रिया से रक्त तथा वायु की गति अधोमुखी होने से मल त्याग में सहायता मिलती है। और शरीर के उत्तम तथा पवित्र अंग सिर आदि को मल के परमाणुओं से रक्षा होती है। शौच के समय ऊपर नीचे के दांतो को जोर से सटाकर रखना चाहिए इससे दांत मजबूत होते हैं और दातों की कोई बीमारी नहीं होती।
(७) दंत धावन :- DENTAL BRUSHING
शौच निवृत्ति के पश्चात व्यक्ति को मंजन से दांतो को साफ करना चाहिए। आजकल दांतो को साफ करने के लिए टूथब्रश का प्रयोग लोग अधिक करते हैं, परंतु नींद तथा बबूल आदि का दातुन दांतो को सुरक्षा के लिए उत्तम और लाभप्रद है। दांत साफ करने के बाद जीबी से जीभ अवश्य साफ करनी चाहिए।
(८) व्यायाम तथा वायु सेवन :- EXERCISE AND AIR INTAKE
शरीर को स्वस्थ और मज़बूत रखने के लिए कार्य करने का सामर्थ बनाए रखने के लिए, पाचन क्रिया तथा जठराग्नि को ठीक रखने के लिए, शरीर को सुगठित सुदृढ और सुडोल बनाने की दृष्टि से अपने आयु बल देश और काल के अनुरूप नियमित रूप से Daily Routine में योगासन एवं व्यायाम अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति सामान्यतः बीमार नहीं होता और उन्हें औषधि सेवन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।
सुबह ओर शाम को नित्य खुली, ताजी और शुद्ध हवा में अपनी शक्ति के अनुसार थकान न मालूम होने तक साधारण चाल से घूमना चाहिये। प्रौढ़वस्था में टहलना एक प्रकार का व्यायाम है। नियम पूर्वक टहलने से तथा शुद्ध वायु का सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। हमें अपने मन को प्रसन्नचित और चित्स्भ्र रखने के लिये कम से कम २० मिनिट ध्यान करना चिहिए।
(९) स्नान :- BATHING
इस प्रकार से व्यक्ति को प्रतिदिन Daily Routine मंत्र पूजा स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। तभी वहां संध्या वंदन मंत्र जप तोत्र आदि पाठ भगवत दर्शन चरणामृत ग्रहण करने का अधिकारी बनता है। गंगा आदि पवित्र नदियों में बहते हुए निर्मल जल वाले सरोवर में स्नान करना भौतिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वोत्तम है। यदि ऐसा ना हो तो आप अपने घर के नल से स्नान कर निम्न मंत्र से गंगा जी का आह्वान करके स्नान कर सकते हैं।
“ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिंधु कावेरी जले अस्मिन सन्निधि कुरु ।।”
अर्थात हे गंगा, जमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, नदी आपके इस पवित्र जल से स्नान करके मैं शुद्ध और पवित्र हुआ हूं। प्रातः काल स्नान करना उत्तम माना गया है स्नान करते समय भगवान के नाम का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
(१०) पूजा विधान : WORSHIP RITUALS
हमारी दिनचर्या Daily Routine मैं अंत में पूजा विधान का भी महत्व प्राचीन समयसे बहुत है। स्नान करने के पश्चात इष्ट देव की पूजा विधि का महत्व है। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य इन जातियों को यज्ञोपवित (जनेऊ) धारण करना चाहिए। इसी से वे संध्या वंदन तथा वैदिक देव पूजन कार्यों के अधिकारी मानेजाते हैं। स्त्री एवं शूद्र के लिए केवल भगवान राम जप कीर्तन एवं सेवा कार्य में सलंग्न रहने की बात कही है। परन्तु आज आधुनिक युग्मे ऐसा नही है।
इस प्रकार हमारे शास्त्रों में व्यक्ति के दिनचर्या Daily Routine की बात बताई गई है जो हमारी संस्कृति के लिए उत्तम क्रिया है। इसलिए हमें स्वयं और हमारे बच्चों का इससे अवगत कराए तभी वह संस्कारी बन सकेंगे। प्रातः कॉलिंन दिनचर्या Daily Routine हमारे जीवन का एक अंग है। जिसे हम सभी को स्वीकार करना चाहिये। तभी हमारा जीवन उत्तम से सर्वोत्तम बन सकता है।
Dr. Karuna Trivedi
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Heer Trivedi
Very nice information 👌👌